Part 5 pm ke pen se bate brahma puran ki :- राजा पृथु द्वारा पृथ्वी का दोहन

राजा पृथुद्वारा पृथ्वी का दोहन 
राज्याभिषेक समयी पृथु को देख प्रसन्न हुई प्रजा को ऋषियों ने कहा ‘यह महाराज आप लोगों की जीविका का प्रबंध करेंगे।’ ऋषियों की बात सुनकर प्रजा बड़ी प्रसन्न हुई। वह राजा पृथु के पास दौड़ी और उन्हें घेरते हुए जीविका का प्रबंध करने की याचना की।
उनकी भलाई के लिए पृथु धनुष्य बाण हाथ में लिए पृथ्वी की ओर दौड़ पड़े। पृथ्वी उनके भय से कांपने लगी और गाय का रूप धारण करके भागने लगी। पृथु ने धनुष्य लेकर उसका पीछा किया। पृथु के भय से पृथ्वी ब्रम्हलोक आदि अनेक लोकों में गयी। परंतु सभी जगह पृथ्वी ने पृथु को धनुष्य लिए अपने आगे ही पाया। जब कहीं कोई रक्षा न हुई तब पृथ्वी शरण आ गयी और पृथु से कहा ‘ समस्त प्रजा मेरे ऊपर ही स्थित हैं, मैं नष्ट हो गयी तो प्रजा भी नष्ट हो जायेगी। यदि तुम प्रजा का कल्याण चाहते हो तो मेरा वध न करो। (1. अ. जा.) तिर्यग्योनी में स्त्री को अवध्य माना हैं।’
पृथु ने कहा ‘जो अपने या पराये किसी एक के लिए बहुत से प्राणियों का वध करता हैं, उसे अनंत पाप लगता हैं। किंतु जिस अशुभ व्यक्ति का वध करने से बहुत से लोग सुखी हो, उसको मारने से पातक या (2. अ. जा.) उपपातक नहीं लगता। तुम संपूर्ण प्रजा की जीवन रक्षा को समर्थ हो, मेरी बात मानो मेरी पुत्री बन जाओ तभी मैं अपने बाण को रोक लूँगा।’
पृथ्वी ने पृथु की बात मान ली उसे कहा ‘ मेरे लिए कोई बछड़ा देखो, जिसके प्रति मेरा ममत्व जागृत हो और मैं दूध दे सकूँ। तुम मुझे सब ओर से समतल कर दो जिससे मेरा दूध सब ओर बह सके।’
पृथ्वी के कहने पर पृथुने अपने बाणों की नोक से पर्वतों को उखाड़ा और उन्हें एक स्थान पर एकत्रित किया। उससे पहले शहरों और गांवों के कोई सीमाबद्ध इलाके नहीं होते थे। उस समय अन्न उत्पादन, खेती, व्यापार, गोरक्षा नहीं होती थी। यह सब वेनकुमार पृथु के समय से शुरू हुआ।
भूमि का जो भाग समतल था वहाँ प्रजाने निवास करना पसंद किया। उस समय तक प्रजाका आहार केवल फल और मूल था।
पृथु ने स्वायंभुव मनु को बछड़ा बनाकर अपने हाथ से पृथ्वी को दूहा।
पृथु ने सभी प्रकार के अन्नों को दुहा, उसी अन्न से आज भी प्रजा जीवन धारण करती हैं।
उस समय ऋषि, देवता, पितर, नाग, दैत्य, यक्ष, पुण्यजन, गंधर्व, पर्वत और वृक्ष सभी ने पृथ्वी को दुहा। उनके दूध, पात्र, बछड़े और दुहनेवाले ये सभी अलग-अलग थे।
ऋषियों के बछड़ा चंद्रमा बने, बृहस्पति ने दुहने का काम किया, तपोमय ब्रम्ह उनका दूध था और वेद उनके पात्र थे।
देवताओं ने सुवर्ण पात्र लिया और पुष्टिकारक दूध लिया, उनके बछड़ा इंद्र बने और सूर्य ने दुहने का कार्य किया।
पितरों का पात्र चांदी का था, यम उनके बछड़ा बने, (3.अ. जा.) अंतकने दूध दुहा, उनके दूध का नाम था (4.अ. जा.) स्वधा।
नागोंने तक्षक को बछड़ा बनाया, (5.अ. जा.) तुंबी का पात्र था, ऐरावत नाग ने दुहने का कार्य किया और विषरूपी दूध का दोहन किया।
असुरों में (6.अ. जा.) मधु दुहनेवाला बना, उसने मायामय दूध दुहा, (7.अ. जा.) विरोचन बछड़ा बना, पात्र लोहे का था।
यक्षों का पात्र (8.अ. जा.)कच्चा था, कुबेर बछड़ा बने, (9.अ. जा.) रजतनाभ दूध दुहनेवाले थे, अंतर्धान होने की विद्या उनका दूध था।
राक्षसों में (10.अ. जा.) सुमाली नाम का राक्षस बछड़ा बना, रजतनाभ दुहनेवाला बना, उसने (11.अ. जा.) कपाल रूपी पात्र में (12.अ. जा.) शोणित रूपी दूध का दोहन किया।
गंधर्वो में (13.अ. जा.) चित्ररथ ने बछड़े का काम किया, कमल उनका पात्र था, (14.अ. जा.) सुरुचि दुहनेवाला था, पवित्र सुगंध उनका दूध था।
पर्वतों में (15.अ. जा.) मेरु दुहनेवाला बना, (16.अ. जा.) हिमवान बछड़ा बना, शिला पात्र बना, औषधि दूध बनी।
वृक्षों में  (17.अ. जा.) प्लक्ष बछड़ा बना,  (18.अ. जा.) शाल ने दुहने का काम किया,  (19.अ. जा.) पलाश पात्र बना, जलने और काटने पर पुन्हा अंकुरित होना इनका दूध था।
इस तरह हर किसी ने अपने-अपने तरीकेसे पृथ्वी का दोहन किया।
गोरूपा पृथ्वी मेदिनी नामसे विख्यात हैं, यह समुद्र तक पृथु के ही अधिकार में थी।
(20.अ. जा.) मधु और कैटभ के (21.अ. जा.) मेद से व्याप्त होने के कारण इसे मेदिनी कहते हैं।
राजा पृथु की आज्ञा से यह उनकी पुत्री बनी इसलिए इसे पृथ्वी कहते हैं।
सभी पृथ्वी वासियों को पृथु की वंदना करनी चाहिए।
अधिक जानकारी
1. तिर्यग्योनि – तिर्यग्योनि शब्द का अर्थ है “पशु-पक्षियों आदि की योनि” या “पशुओं की स्थिति या जाति”। यह संस्कृत शब्द “तिर्यञ्च” (तिरछा, नीचे) और “योनि” (जन्म, स्थिति) से मिलकर बना है।
2. उप पातक – “उपपातक” का अर्थ है छोटा पाप, जिसके लिए कम दंड और सरल प्रायश्चित का विधान है। यह शब्द “उप” (छोटा) और “पातक” (पाप) से मिलकर बना है।
3. अंतक – अंतक यमराज को कहा जाता है। वे हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता हैं। ( पुराण में दोहन के समय अंतक और यम दोनों का काम अलग बताया हैं, पर जानकारी में अंतक को ही यम लिखा पाया। )
4. स्वधा –  “स्वधा” का अर्थ है एक शब्द या मंत्र जो देवताओं या पितरों को हवन के समय दिया जाता है। यह पितरों को दिया जाने वाला अन्न या भोजन भी हो सकता है।
5. तुंबी – ऋषिमुनी जो कमंडल इस्तेमाल करते हैं वह तुंबी का होता हैं।
6. मधु – मधु एक असुर था, जो भगवान विष्णु के कान के मैल से पैदा हुआ था और उसने ब्रह्मा को मारने का प्रयास किया था।
7. विरोचन – हिंदू धर्म में एक असुर राजा था। वह हिरण्यकश्यप का पोता, प्रह्लाद का पुत्र और बलि का पिता था।
8. कच्चा – कच्चा के बारें में सटीक जानकारी नहीं मिली, ऑनलाइन कच्चा नाम से एक बर्तन बेचा जाता हैं।
9. रजतनाभ – रजतनाभ यक्ष की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत हैं, जिनमें से एक यह है कि वे ब्रह्मा द्वारा जल की रक्षा के लिए बनाए गए थे।
10. सुमाली राक्षस – सुमाली एक राक्षस था जो रामायण में एक महत्वपूर्ण पात्र है। वह रावण का नाना और राक्षस वंश का एक शक्तिशाली सदस्य था।
11. कपाल – कपाल को ज्यादातर अघोरी विद्या में इस्तेमाल किया जाता हैं। खोपड़ी को उल्टा करके उसमें रक्त पिया जाता हैं।
12. शोणित – “शोणित” शब्द का अर्थ है रक्त, खून, रुधिर या लोहित। यह शब्द संस्कृत से लिया गया है और इसका उपयोग रक्त या रक्त के रंग को दर्शाने के लिए किया जाता है।
13. चित्ररथ – चित्ररथ महाभारत में एक गंधर्व का नाम था, जो कश्यप और दक्ष कन्या मुनि का पुत्र था। वह कुबेर का सखा भी माना जाता था। चित्ररथ एक महान योद्धा था, जिसने अर्जुन के साथ युद्ध किया था। बाद में उनकी लड़ाई दोस्ती में बदल गई और चित्ररथ ने अर्जुन को 500 दिव्य अश्व उपहार में दिए।
14. सुरुचि – सुरुचि नाम से किसी पुरुष गंधर्व की जानकारी नहीं मिल पायी हैं। जो जानकारी मिली हैं वह इस प्रकार हैं – पुराण में सुरुचि एक गंधर्व नहीं है, बल्कि उत्तानपाद नामक राजा की पत्नी है, जो राजा की सबसे प्रिय पत्नी थी। राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थी – सुरुचि और सुनीति। सुरुचि, राजा को अपनी हर इच्छा से खुश करने वाली पत्नी थी, जबकि सुनीति नीतिशील थी।
15. मेरु पर्वत – मेरु पर्वत एक पौराणिक पर्वत है जिसका उल्लेख कई धर्मों और संस्कृतियों में मिलता है। इसे ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता है, और यह देवताओं का निवास स्थान भी है। इसे अक्सर एक स्वर्णिम पर्वत के रूप में दर्शाया जाता है, जो सभी ब्रह्मांडों का आधार है।
16. हिमवान पर्वत – हिमवान पर्वत, एक विशाल पर्वत श्रृंखला है जो हिंदू धर्म और भारतीय साहित्य में वर्णित है। यह हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है, और इसे हिमवत और हिमवान के नाम से भी जाना जाता है।
17. प्लक्ष वृक्ष – प्लक्ष वृक्ष, जिसे पाकड़ या फिकस विरेंस भी कहा जाता है, एक प्रकार का वृक्ष है जो हिंदू धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसका वानस्पतिक नाम फिकस विरेंस (Ficus virens) है। यह मध्यम आकार का पेड़ है और इसकी हवाई जड़ें होती हैं, जो त्वचा रोग में उपयोगी होती हैं।
18. शाल वृक्ष – शाल या सखुआ अथवा साखू (Shorea robusta) एक द्विबीजपत्री बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी लकड़ी इमारती कामों में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है। इसे संस्कृत में अग्निवल्लभा, अश्वकर्ण या अश्वकर्णिका कहते हैं।
19. पलाश वृक्ष – पलाश के वृक्ष में त्रिदेव का वास माना जाता हैं, इसे ज्योतिषशास्त्र में उपाय के लिए और बीमारी में औषधि बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता हैं।
20. मधु, कैटभ – मधु और कैटभ हिंदू पौराणिक कथाओं में दो राक्षस थे जो भगवान विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न हुए थे। वे शक्तिशाली और अहंकारी थे, और उन्होंने ब्रह्मा को परेशान किया और वेदों को चुरा लिया था। अंततः, भगवान विष्णु ने उन्हें मारा, जिसके कारण विष्णु को मधुसूदन (मधु का हत्यारा) और कैटाभि (कैटभ का हत्यारा) कहा गया।
21. मेद – मेद को चरबी कहते हैं।
 
समाप्त

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