प्रेस की आज़ादी के लिए आगे आया हाईकोर्ट, कहा- मीडिया रिपोर्टों की व्याख्या के आधार पर आपराधिक शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने ‘साक्षी’ दैनिक समाचार पत्र के सीनियर जर्नालिस्ट और एडिटर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की। उन पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(2) के तहत “उम्मादि कृष्णजिल्लालो अराचकम” शीर्षक से लेख प्रकाशित करने का आरोप लगाया गया था। लेख में कथित तौर पर झूठी जानकारी दी गई थी, जिससे हिंसक दंगे भड़कने और जनता को गुमराह करने की संभावना थी।Section 353 of BNS in Hindi - ConstitutionofIndia.in

BNS की धारा 353(2) किसी भी व्यक्ति को धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति या समुदाय या किसी भी अन्य आधार पर विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों या जातियों या समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाएं पैदा करने या बढ़ावा देने, या पैदा करने या बढ़ावा देने की संभावना वाले किसी भी बयान या रिपोर्ट को, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों सहित, झूठी सूचना, अफवाह या भयावह समाचार देने, प्रकाशित करने या प्रसारित करने के इरादे से दंडित करती है, तीन साल तक की कैद या जुर्माना, या दोनों से दंडित करती है।
Inclusion Of IO Over & Above The Number Of Reconstituted SIT Not Permissible: Andhra Pradesh High Court Directs Fair Investigation In Tirupati Laddu Adulteration Case

जस्टिस हरिनाथ एन. ने इस अनुच्छेद में ऐसा कोई तत्व नहीं पाया, जो समूहों के बीच शत्रुता को भड़काए या बढ़ावा दे सके। उन्होंने दोहराया कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) न केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, बल्कि किसी व्यक्ति के भाषण और लेख को सुनने, पढ़ने और प्राप्त करने के अधिकार की भी रक्षा करता है।

भारतीय संविधान परिषद - अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद -19 में दी गई 6 तरह की स्वतंत्रताऐं 19 (A) बोलने की आजादी 19 (B) सभा की आजादी 19 (C ...

सिंगल जज ने आगे कहा – “ऐसे लेख के प्रकाशन के संबंध में शिकायत प्राप्त होने पर अपराध दर्ज किया गया, जिससे न तो समूहों के बीच शत्रुता बढ़ी और न ही किसी हंगामे या अधिकारों को ठेस पहुंची। इस न्यायालय का सुविचारित मत है कि कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में सुस्थापित है। प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी माध्यमों से सूचना जनसाधारण तक पहुंचे। प्रत्येक मुद्दे के लिए 360° आयामी दृष्टिकोण हो सकता है। इसलिए विभिन्न कोणों से विचार आपराधिक शिकायतों का विषय नहीं बन सकते। यदि लेख मानहानिकारक है तो बदनाम व्यक्ति के लिए लेख द्वारा कथित रूप से पहुंचाई गई मानहानि की सीमा तक हर्जाना प्राप्त करने का विकल्प हमेशा खुला रहता है।”

मामले की पृष्ठभूमि चिरुमामिला कृष्णा (प्रतिवादी नंबर 2) द्वारा शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि लेख के परिणामस्वरूप दो धार्मिक समूहों या जातियों के बीच शत्रुता बढ़ेगी और दंगे और हंगामा भड़केगा। इसके बाद याचिकाकर्ता के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 353(2) के तहत कथित अपराध के लिए दर्ज शिकायत को रद्द करने हेतु आपराधिक याचिका दायर की गई।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि लेख विश्वसनीय जानकारी पर आधारित था और व्यापक शोध के बाद प्रकाशित किया गया। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि अखबार का लेख केवल इसलिए शिकायत दर्ज करने का कारण नहीं बन सकता, क्योंकि यह लेख राज्य के सत्ताधारी लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है। यह आरोप लगाया गया कि शिकायत में यह नहीं बताया गया कि किन वर्गों या समूहों पर दंगे हुए। यह भी तर्क दिया गया कि अखबार की रिपोर्ट पर बेबुनियाद आरोप नहीं लगाए जा सकते। यही भारतीय दंड संहिता की धारा 353(2) के तहत मामला दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता। अंत में याचिकाकर्ता ने पुष्टि की कि लेख धार्मिक, खुदरा, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों, जातियों और समुदायों के बीच किसी भी प्रकार की शत्रुता, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा नहीं देगा।

 

 

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Author: Dd 24 Now

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